शनिवार, 2 जनवरी 2010

गीतिका: तितलियाँ --संजीव 'सलिल'

गीतिका



तितलियाँ


संजीव 'सलिल'
*


यादों की बारात तितलियाँ.


कुदरत की सौगात तितलियाँ..


बिरले जिनके कद्रदान हैं.


दर्द भरे नग्मात तितलियाँ..


नाच रहीं हैं ये बिटियों सी


शोख-जवां ज़ज्बात तितलियाँ..


बद से बदतर होते जाते.


जो, हैं वे हालात तितलियाँ..


कली-कली का रस लेती पर


करें न धोखा-घात तितलियाँ..


हिल-मिल रहतीं नहीं जानतीं


क्या हैं शाह औ' मात तितलियाँ..


'सलिल' भरोसा कर ले इन पर


हुईं न आदम-जात तितलियाँ..


*********************************

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें